द फॉलोअप डेस्कः
झारखंड में 2019 लोकसभा चुनाव में एक तो अधिसंख्य सीटों पर जीत का अंतर अधिक था। वहीं, विजेता और उपविजेता के बाद तीसरा उम्मीदवार इनके आसपास भी नहीं था। विजेता एवं उपविजेता के अलावा अन्य उम्मीदवारों को एक से दो प्रतिशत वोट प्राप्त करने में भी पसीना छूट गया था। स्थिति यह थी कि 88 प्रतिशत उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। दरअसल हर बार ऐसा होता है कि चुनाव की घोषणा होते ही कई नए-नए राजनीतिक दल बन जाते हैं। दूसरे राज्य की पार्टियों के उम्मीदवार भी चुनाव लड़ते हैं। सभी उम्मीदवार चुनाव जीतने का दावा तो करते हैं, लेकिन परिणाम के बाद अधिकतर उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा पाते। पिछले लोकसभा चुनाव में कुल 229 उम्मीदवारों में 202 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। कुल 204 पुरुष उम्मीदवारों में 179 तथा 25 महिला उम्मीदवारों में 23 की जमानत जब्त हुई थी।
88.20 प्रतिशत उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी
जमानत जब्त होने के दायरे में आनेवाले उम्मीदवारों का प्रतिशत राष्ट्रीय औसत से भी अधिक था। झारखंड में 88.20 प्रतिशत उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी, जबकि राष्ट्रीय सतर पर 86 प्रतिशत की ही जमानत जब्त हुई थी। जिन 202 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई थी, उनमें 25 उम्मीदवार राष्ट्रीय दलों के थे। सभी 95 निर्दलीय की जमानत जब्त हो गई थी। वहीं, नेशनल एवं स्टेट पार्टी के अलावा अन्य निबंधित पार्टियों के सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई थी।
नोटा को मिले थे अधिक वोट
पिछले लोकसभा चुनाव में झारखंड की 14 सीटों में चार सीटों पर विजेता तथा उपविजेता के बाद नोटा को अधिक वोट मिले थे। इनमें दुमका, गिरिडीह, खूंटी तथा सिंहभूम जैसी सीटें सम्मिलित हैं। इसी तरह, तीन सीटों पर तीसरे स्थान पर निर्दलीय उम्मीदवार रहे थे। दुमका से सुनील सोरेन तथा शिबू सोरेन के बाद तीसरे स्थान पर निर्दलीय प्रत्याशी श्रीलाल किस्कू थे। इसके बाद नोटा को वोट मिले थे। इसी तरह रांची में तीसरे स्थान पर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में रामटहल चौधरी रहे थे, जिन्होंने भाजपा से टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ा था। वहीं, धनबाद में भी तीसरे स्थान पर निर्दलीय प्रत्याशी राजेश कुमार सिंह रहे थे। राज्य की 14 लोकसभा सीटों में सिर्फ चतरा में राजद के सुभाष प्रसाद यादव तथा कोडरमा में सीपीआइ (एम) के राजकुमार यादव ही पांच प्रतिशत से अधिक वोट ला सके थे। तीसरे स्थान पर रहनेवाले उम्मीदवारों को कम वोट मिलने की बड़ी वजह गठबंधन में चुनाव लड़ना था।